shahil khan

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छोटे छोटे सवाल –८

फिर ठाकुर थोड़ा रुका और लोगों के भावशून्य-से चेहरों पर अपनी बात की प्रतिक्रिया खोजते हुए बोला, "किसमें इतना गुर्दा है जो मेरा सलेक्शन रोक दे! कॉलेज की ईट-से-ईट बज जाएगी। ठकुरात के तीन सौ लड़के हैं कॉलेज में। अगर मुस्लिम स्कूल में चले गए तो यहाँ तनख्वाह भी नहीं पटेगी मास्टरों की।" फिर थोड़ा रुककर बोला, "अपना क्या है, नौकरी मिली न मिली ।" फिर सत्यव्रत की ओर इशारा करके कहा, "मुझे तो इस बेचारे पर तरस आ रहा है। मेरे घर छह हलों की खेती है। एक हाली को एक मास्टर की तनख्वाह देता हूँ। न होगा एक हल ही संभाल लूँगा, पर इनके बस का तो वह भी नहीं।"

माथुर ने कहा, "आपका हृदय बहुत दयावान है। आपकी दया का सहारा पाकर सत्यव्रतजी का उद्धार हो गया। आप धन्य हैं।"

एक हल्का-सा ठहाका फिर गूंज उठा। ठाकुर का गोल मुंह और विकृत हो गया। उसका जतन से संभाला हुआ सन्तुलन बिखर पड़ा। कनपटियाँ सुर्ख हो गईं। बड़ी-बड़ी आँखों से चिंगारियों-सी उगलते हुए बोला, "तो साफ़-साफ़ ही सुन लीजिए। असिस्टेंट टीचरों और प्रोफेसरों का सेलेक्शन कभी का हो चुका। यह इंटरव्यू तो एक फारमेल्टी है, फारमेल्टी।" फिर उँगली से कोने में बैठे असरार साहब की ओर इशारा करते हुए राजेश्वर बोला, "मेरे साथ दूसरा एपाइंटमेंट इनका होगा। ये कोतवाल साहब के आदमी हैं, क्यों साहब ?" और उसने असरार की ओर देखा। माथुर ने धीरे से पाठक के कान में कुछ कहा। असरार ने कोई उत्तर न दिया।

राजेश्वर ने उँगलियाँ फैलाकर डेस्क पर चपत मारी और मुट्ठी बाँधते हुए बोला, "मैं लिखकर देता हूँ अगर मेरी बात में जरा-सी भी चेंज हो जाए।" इतना कहकर विजेता के भाव से उसने फिर सारे उम्मीदवारों की ओर देखा।

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